ये महिलाओ को होने वाला एक दुखदाई रोग है जो स्त्रियों के लिए एक बड़ी समस्या है! आईसी या पीवीसी रोग से पीड़ित महिलाओं में पायें जाने वाले 3 कॉमन लक्षण निम्न है:
आईसी रोग का कारण अभी तक अज्ञात है कुछ अनुसंधानकर्ताओं ने हाल में ही एक तत्व एंटी प्रोलिफ्रेटिव (एपीएफ) का पता लगाया है जो कुछ अपवादों को छोड़ कर केवल महिलाओं के मूत्र में आईसी के साथ पाया जाता है, एन का मानना है की एपीएफ मूत्र थैली के अस्तर और सुरक्षा झिल्ली की कोशिकाओं के विकल्प को अवरुद्द कर आईसी के प्रकोप को बढ़ावा देता है!
ध्यान में रखने वाली बात यह है की इस रोग से सम्बंधित उपचार का असर होने में काफी समय लगता है! और इस रोग के लिए रोगी को घैर्य रखने की आवश्यकता होती है! अनेक महिलाएं इस बात से काफी संतोष महसूस करने लगती है की उन के लक्षणों की जानकारी के आधार पर उपचार संभव हो सकता है! लेकिन जब सुधर प्रक्रिया में दोनों अथवा महीनो तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है, तो वे काफी हतोत्साहित हो जाती है! आज के समय में आईसी का कोई निदान नहीं है, लेकिन कुछ ऐसे उपचार है जिस से इस के लक्षणों में चमत्कारी तरीके से सुधार हो सकता है!
उपचार की पुनरावृत्ति हर सप्ताह 1 से 2 बार और 6 7 सप्ताह तक होती रहनी चाहिए! डीएमएसओ पहली बार प्रयोग करने पर यह ब्लैडर में काफी हलचल पैदा करता है और वास्तव में अगर देखा जाए तो ब्लैडर की पीड़ा इस के शुरुआती उपयोग करने के बाद बहुत बढ़ जाती है! और मूत्र त्याग करने की संख्या में भी वृद्धि हो जाती है! लेकिन उपचार की उत्तरावस्था में यह धीरे-धीरे ठीक होने लगता है और इस के लक्षणों में काफी सुधर हो जाता है!
- ब्लेडर पेन, असुविधा अथवा भारीपन का एहसास ब्लैडर पेन के अलावा या दर्द महिलाओं की योनी के आसपास के अन्य हिस्सों, मसलन लोअर एब्डोमेन और कुल्हे की हड्डियों के नीचे भी हो सकता है! यह दर्द आताजाता रह सकता है अथवा स्थाई तौर पर महसूस किया जा सकता है! यह दर्द ब्लैडर के भरे रहने पर बहुत ज्यादा हो सकता है और मूत्रत्याग करने पर ही इस दर्द में कमी आती है!
- मूत्र त्याग करने की आवश्यकता कभी कभी प्रत्येक घंटे में या उस से कम देर में महसूस होती है!
- मूत्र को त्यागने की जल्दी होती है! ये तीनो लक्षण सहवास की अवधी में अथवा उस बाद अक्सर बहुत बढ़ जाते है, यह समस्या निद्रा, कार्य, सामाजिक गतिविधियों तथा जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करती है!
आईसी रोग का कारण अभी तक अज्ञात है कुछ अनुसंधानकर्ताओं ने हाल में ही एक तत्व एंटी प्रोलिफ्रेटिव (एपीएफ) का पता लगाया है जो कुछ अपवादों को छोड़ कर केवल महिलाओं के मूत्र में आईसी के साथ पाया जाता है, एन का मानना है की एपीएफ मूत्र थैली के अस्तर और सुरक्षा झिल्ली की कोशिकाओं के विकल्प को अवरुद्द कर आईसी के प्रकोप को बढ़ावा देता है!
ध्यान में रखने वाली बात यह है की इस रोग से सम्बंधित उपचार का असर होने में काफी समय लगता है! और इस रोग के लिए रोगी को घैर्य रखने की आवश्यकता होती है! अनेक महिलाएं इस बात से काफी संतोष महसूस करने लगती है की उन के लक्षणों की जानकारी के आधार पर उपचार संभव हो सकता है! लेकिन जब सुधर प्रक्रिया में दोनों अथवा महीनो तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है, तो वे काफी हतोत्साहित हो जाती है! आज के समय में आईसी का कोई निदान नहीं है, लेकिन कुछ ऐसे उपचार है जिस से इस के लक्षणों में चमत्कारी तरीके से सुधार हो सकता है!
आईसी या पीवीसी रोग का उपचार क्या है?
डाइमिथाइल सल्फ़आक्साइड (डीएमएसओ): यह एफडीए द्वारा अनोमोदित तरल रसायन है जिसे अक्सर अन्य दवाओं के साथ मिला कर एक सॉफ्ट रबर ट्यूब (कैथीटर) के जरिए मूत्र थैली में सीधे प्रवेश करा दिया जाता है और लगभग 15 से 30 मिनट के बाद प्राकृतिक मूत्र के रूप में उत्सर्जित कर दिया जाता है! ऐसा मन जाता है की इस प्रक्रिया से यह ब्लैडर वॉल एम्फ्लेमेंशन को सीधे तरीके से कम कर देता है, दर्द में कमी लाता है और ब्लैडर की मॉसपेशियो को संकुचित होने से बचाता है!उपचार की पुनरावृत्ति हर सप्ताह 1 से 2 बार और 6 7 सप्ताह तक होती रहनी चाहिए! डीएमएसओ पहली बार प्रयोग करने पर यह ब्लैडर में काफी हलचल पैदा करता है और वास्तव में अगर देखा जाए तो ब्लैडर की पीड़ा इस के शुरुआती उपयोग करने के बाद बहुत बढ़ जाती है! और मूत्र त्याग करने की संख्या में भी वृद्धि हो जाती है! लेकिन उपचार की उत्तरावस्था में यह धीरे-धीरे ठीक होने लगता है और इस के लक्षणों में काफी सुधर हो जाता है!