बच्चो में टी.बी. का इलाज और उपाय- T.B. Disease in Children Treatment & Cure in Hindi

विश्व स्वस्थ्य संगठन यदि टी.बी. यानि ट्यूबरक्लोसिस के नियंत्रण पर प्रभावी प्रयास नहीं किये जाते है तो यह मानव अस्तित्व के लिए खतरा उत्पन्न करेगा! इसे तपेदिक या श्रय रोग भी कहते है!
टी.बी. किसी भी आयु में हो सकती है और किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती है! यह सब से ज्यादा और सबसे व्यक्ति के फेफड़ो को ही प्रभावित करती है!


बच्चो में टी.बी. व्यस्को से अलग तरह की होती है! व्यस्को में आमतौर पर फेफड़ो की टी.बी. होती है, जबकि बच्चो में फेफड़ो के आलावा शरीर के अन्य अंगो जैसे, रक्तमज्जा, हड्डियों, मस्तिष्क की झिल्ली आदि के टी.बी. से ग्रस्त होने की सम्भावना अधिक होती है!

टी.बी. के जीवाणु फेफड़ो के मरीजो की खासी, बलगम के साथ निकल कर वातावरण में फैलते है और इस प्रदूषित हवा में स्वस्थ व्यक्ति साँस लेते है तो उन के फेफड़ो में पहुच जाती है और वह रक्त के जरिये अन्य अंगो में पहुच कर उस को प्रभावित करते है, कभी कभी प्रदुषण दूध, भोजन से भी यह रोज हो सकता है!

बच्चो में प्राथमिक टी.बी - T.B. Disease in Children

बच्चो के शरीर में जब पहली बार टी.बी. के जीवाणु प्रवेश करते है तो लसिका पर्व में पहुचते है! ज्यादातर बच्चो में लसिका ग्रंथियों मेंटी.निम्न परेशानिया होने लगती है-
बी. के जीवाणु सूजन पैदा कर सकते है और सुप्तावस्था में पड़े रहते है, कोई समस्याए नहीं करते,  देखा गया है की देश के कुछ शेत्रोके 85% तक बच्चे प्राथमिक संक्रमण ग्रस्त होते है!
प्राथमिक संक्रमण का परिणामबच्चे स्वस्थहै, सक्रिय है, वातावरण में ज्यादा प्रदुचन नहीं है, कुपोषण का शिकार नहीं है तो जीवाणु ताजिंदगी (सारी जिंदगी) शांत राह सकते है पर जीवाणुओ के सक्रीय होने का खतरा हमेशा बना रहता है, लेकिन बच्चो के कुपोषण का शिकार होने पर खसरा, काली खासी, दस्त, एड्स या फिर प्रतिरोधक श्रमता किसी भी कारण से कमजोर होने पर जीवाणु सक्रिय हो कर रोग पैदा कर देते है!

लगभग 10-15 प्रतिशत बच्चो में प्राथमिक संक्रमण के बाद रोग घीरे घीरे बढ़ता हैऔर लसिका ग्रंथियों फेफड़ो की टी.बी. कर सकता है  रोग बढ़ कर छाती की, फेफड़ो के पास गर्दन की लड़का ग्रंथियों में रक्त के माध्यम से जडो दिमाग की झिल्ली में पहुच कर या शरीर के दुसरे अंगो में पहुच कर रोग पैदा कर सकता है! कभी कभी टी.बी. संक्रमित मरीज के निकट संपर्क में रहने से दीधे टी.बी. रोग हो सकता है!

बचपन में टी.बी. रोग के लक्षण

  • किसी भी अंग के टी.बी. संक्रमित होने पर हल्का बुखार आना
  • भूख कम लग्न
  • वजन कम होना
  • कमजोरी महसूर होना
  • शरीर निढाल रहने की होना
कुछ बच्चो में टी.बी. होने पर तेज बुखार होता है, नुमोनिया जैसे लक्षण होते है जो सामान्य उपचार से ठीक नहीं होती! कुछ बच्चो को लम्बे समय तक बुखार रहता है, जिसके कारण का पता, जांचो से नहीं लग पाता बच्चो में खसरा, काली खासी, नुमोनिया, दस्तो के बाद भी बुखार रहता है तो ऐसा हो सकता है के बच्चा संभवतः टी.बी. की चपेट में आ गया हो!

बच्चो में पेट की टी.बी. आम समस्या है, रोग प्रायः प्रदूषित, संक्रमित दूध पीने या फिर संक्रमित ठुक, बलगम निगलने के कारण हो सकता है! उस में पेट की टी.बी. के कारण आंतो के पास लसिका ग्रंथिय सूज जाती है, तिल्ली व लीवर का आकर बढ़ जाता है!

टी.बी. रोग का निदान या इलाज 

परिवार या पड़ोस में कोई टी.बी. का मरीज है तो बच्चो को जल्दी संक्रमित होने का भय रहता है! फेफड़ो की टी.बी. का लक्षण होने पर बलगम की जाँच से की पुष्टि हो सकती है, साथ का X-Ray,रक्त जाँच, मंतूज टेस्ट भी कराया जा सकता है! टेस्ट करने के लिए त्वचा में इंजेक्शन लगाने से यदि सुजन आती है तो रोग की पुष्टि होती है, पर सुजन न आने पर मरीज टी.बी. को रोग नहीं है यह कहा नहीं जा सकता है!

इन के आलावा अन्य अंगो के टी.बी. के जाँच के लिए लसिका ग्रंथियों में यकृत के टुकड़े की सूक्ष्मदर्शी से जाँच (बायोप्सी) मस्तिष्क की झिल्ली के द्रव की जांच (सी.एस.एफ) और रक्त में मोनोकोलोलल एंटीबायोटिक के स्टार की जाँच से भी रोग की पुष्टि हो सकती है!

रोग से बचाव

टी.बी. जीवन भर का रोग है, अतः बच्चो को कुपोषित न होने दे, खसरा, दस्त, चेचाक्ग्रस्त न होने दे, यदि बच्चे रोग से पीड़ित होते है तो फ़ौरन उपचार करवाए, इस दौरान बच्चे को कुपोषण न होने दे!
घर का वातावरण स्वस्च रखे, बच्चो को संतुलित भोजन दे, टी.बी. के मरीजो से उन को दूर रखे, दूध उबाल कर पीले, बच्चो को बी.सी.जी का टेका जन्म के बाद शीघ्र से शीघ्र लगाए, यह टीका पूर्णतः रोग से बाचाव तो नहीं कर पाता, पर यदि रोग होता है तो मामूली होता है! रोग फेफड़ो ग्रंथियों तक ही प्रायः सीमित रहता है!

टी.बी.रोग का उपचार

इस रोग के उपचार के लिए अनेक प्रभावी दवाए उपलब्ध है, आवश्यक यह है की रोग की पहचान शुरुआत में ही हो जाए, सरकार ने हर जिले में टी.बी. केंद्र (DOTS) खोले है जहा पर इस रोग के उपचार की सभी सुविधाय निःशुल्क उपलब्ध है ! इन (DOTS) केन्द्रों में रोग की पुष्टि होने के बाद मरीजो को एक खुराक दावा खिलाने के बाद एक सप्ताह की दावा दी जाती है, यह प्रक्रिया 6 माह तक चलती है, यह विधि डॉट्स (DOTS) कहलाती है, इस विधि द्वारा सुनिश्चित होता है की मरीज नियमित दवाओ का सेवन कर रहे है!